पूछती तो नहीं वो क्या हो रहा है उसके साथ
पर फिर भी जवाब मिल जाता है मुझे
यूँ तो कई बार समय को फिसलते देखा है
पर समय निकलता नहीं अब ऐसे
जब रात भर कराहता है वो |
सिमटे हुए कराहते है वो तो बद्दुआ भी दुआ होती है
वक़्त जो होता है लोरी का पर सुलाने को मन नहीं मानता
हाथ बढ़ता है थामने को पर गोद में ले लेती हूँ
बस चैन आ जाए तुझे यही आस लगाती हूँ |
ना जाने कहाँ होती है ज़िंदगी इस पार या उस पार
पर सच मान लेती हूँ की ख़ुशियाँ ही होंगी उस पार
यूँ तो तुझे जाने कभी ना देती
पर दुनिया है जान जिसे तू नज़र ही नहीं आती |
यह कैसा दुनिया का सबब है
समझ नहीं आता की दुआ करूँ या दुआ करूँ
हसीन तो दुनिया है बहुत पर मौत में कैसा चैन होगा
वो तड़प देखी है जीने के लिए की साँस थम कर भी चलती हैं
तुझे जीते देख ख़ुश हो उठता है मन पर साँस थम कर चलती है |
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