देखा था मैंने जब बाँध रहे थे उसे
कैसे भागी थी वो ख़ुद को बचाने को
देखा था जब दिन भर अकेली रहती थी
क्यूँ ऐसे ही ख़रीद लाए थे उसे
देखा था जब कींच मैं बैठी रहती थी
की शाम को गवाला बदलेगा उसका खूँटा
बीत गयी उसकी ज़िंदगी ऐसे ही बच्चे पैदा करके
कभी आया ही नहीं कोई तो कभी जन्म लेकर भी मर गया
ना बुझा मालिक ने, ना गवाले ने उस माँ का क्या हाल हैं
दूध तो आ ही गया था , डोल तो भर ही जाते थे
अब उम्र हुई थी तो एक नन्ही जान ने जन्म लिया
फिर आए थे मालिक माला पहनाने उसको दाना खिलाने
देखा था जब गवाला बोला की थन ख़राब होने लगे हैं
पर बस एक बच्चा और करा दूँ फिर चला जाऊँगा
मैंने पूछा कहाँ तो बोला किसी और गैया की सेवा करने
मैंने सुना फिर किसी गैया का जीवन बर्बाद करने
अब रोक लिया उसे की अब इसकी उम्र नहीं
ऐसा ना करना दोबारा यह इसके जीवन का अर्थ नहीं
फिर उस नन्ही जान को जो आज भी दूध पी रही थी
बना दिया बच्चे का कोठा, लक्ष्मी का फिर जन्म हुआ
ख़रीद फिरौत हो गयी उसकी ज़िंदगी १लीटर दूध ले लिए
जीते जी मार देते हैं ग़ुलामी की ज़ंजीरों मैं एक बेटी को
पर कोई आवाज़ नहीं उठाता बेटी बचाओ बेटी बचाओ
देख लिया दुनिया के दस्तूर को, अपने का कोई सगा नहीं
कह कर ख़ुद से कर रहे अन्याय को भी सही बोल देते हैं
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