दो पंक्ति सोच की विडम्बना परपत्थर की मूर्त को सब कुछ मान थाल परोस देते हैंनन्ही सी जान चुहिया ले जाए दाना तो शोर मचाते हैंवो और बात है की कुत्ते की थाल थोड़ी दूर लगाते हैंपर चुहिया की थाल को प्रसाद मान मज़े से खाते हैं
पत्थर की मूर्त को सब कुछ मान थाल परोस देते हैंनन्ही सी जान चुहिया ले जाए दाना तो शोर मचाते हैंवो और बात है की कुत्ते की थाल थोड़ी दूर लगाते हैंपर चुहिया की थाल को प्रसाद मान मज़े से खाते हैं
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